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Diwali Kab Hai
दिवाली का पर्व 2024 में 31, 1 नवंबर को मनाया जाएगा। भारत और कई अन्य देशों में दिवाली का त्योहार बड़े उत्साह और धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व न केवल रोशनी का, बल्कि प्रेम, सांस्कृतिक एकता और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। दिवाली, जिसे दीपावली भी कहा जाता है, का शाब्दिक अर्थ है 'दीपों की पंक्ति'। इस दिन लोग अपने घरों, दुकानों, और सार्वजनिक स्थलों को दीयों, रंगोली और सजावटी लाइट्स से सजाते हैं।
दिवाली का पौराणिक महत्व
दिवाली का संबंध कई पौराणिक और ऐतिहासिक कथाओं से है। सबसे प्रचलित कथा के अनुसार, यह पर्व भगवान राम के 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या लौटने पर मनाया गया था। भगवान राम ने राक्षस राजा रावण का वध कर माता सीता को छुड़ाया और अयोध्या लौटे। उनकी वापसी पर अयोध्या वासियों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया। इसी कारण इस दिन को प्रकाश के पर्व के रूप में मनाया जाता है। इसके अलावा, दिवाली का संबंध देवी लक्ष्मी से भी है, जिन्हें धन और समृद्धि की देवी माना जाता है। मान्यता है कि दिवाली की रात देवी लक्ष्मी धरती पर आती हैं, इसलिए लोग इस दिन उनके स्वागत के लिए घरों को सजाते हैं और लक्ष्मी पूजा करते हैं।
दिवाली की पांच दिवसीय अवधि
दिवाली सिर्फ एक दिन का पर्व नहीं है, बल्कि इसे पांच दिनों तक मनाया जाता है:
धनतेरस: दिवाली का पहला दिन धनतेरस होता है, जो स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए मनाया जाता है। इस दिन लोग नए बर्तन, आभूषण और अन्य वस्तुएं खरीदते हैं।
नरक चतुर्दशी (छोटी दिवाली): दूसरे दिन को छोटी दिवाली या नरक चतुर्दशी कहते हैं। मान्यता है कि इस दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध किया था।
दीपावली: यह मुख्य पर्व होता है, जिसमें लक्ष्मी-गणेश की पूजा होती है। लोग घरों में दीये जलाते हैं, मिठाइयों का वितरण करते हैं और पटाखे जलाते हैं।
गोवर्धन पूजा: चौथे दिन गोवर्धन पूजा होती है, जिसे अन्नकूट भी कहा जाता है। यह दिन भगवान कृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने और गोकुलवासियों को इंद्र के क्रोध से बचाने की स्मृति में मनाया जाता है।
भाई दूज: दिवाली के पांचवे और अंतिम दिन भाई दूज का पर्व मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र और समृद्धि की कामना करती हैं।
दिवाली की परंपराएं
दिवाली की परंपराएं विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न हो सकती हैं, लेकिन सामान्यतः इस दिन लोग अपने घरों की सफाई करते हैं, दरवाजों पर रंगोली बनाते हैं, दीये जलाते हैं और विशेष पकवान बनाते हैं। इसके साथ ही, दिवाली पर पटाखे जलाना भी एक आम परंपरा है, हालांकि आजकल पर्यावरण सुरक्षा के कारण लोग कम पटाखे जलाने लगे हैं।
पर्यावरण-संवेदनशील दिवाली
आधुनिक युग में, प्रदूषण और पर्यावरण के प्रति बढ़ती चिंता के कारण लोगों ने इको-फ्रेंडली दिवाली मनाने का रुझान अपनाया है। इसके अंतर्गत लोग कम पटाखे जलाते हैं, और मिट्टी के दीयों का उपयोग कर घर सजाते हैं। यह न केवल पर्यावरण के लिए अच्छा है, बल्कि पारंपरिक तरीकों को पुनर्जीवित करने में भी सहायक है।
दिवाली का सामाजिक और आर्थिक महत्व
दिवाली का पर्व समाज में आपसी प्रेम, सौहार्द और एकता को बढ़ावा देता है। इस दिन लोग एक-दूसरे को मिठाई और उपहार देते हैं, जिससे रिश्तों में मधुरता आती है। इसके अतिरिक्त, दिवाली का आर्थिक महत्व भी बहुत बड़ा है। त्योहार के दौरान बाजारों में खरीदारी की होड़ लग जाती है, जिससे व्यवसायिक गतिविधियों में वृद्धि होती है।
Final Word
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